नानक
गगनमें थालु रविचन्दु दीपक बने , तारिका मण्डल जनक मोती।। 1 धुपु मलयानलो पवणु चँवरो करे , सगल बनराइ फूलन्त जोती।। 2 कैसी आरती होइ भवखण्डना तेरी आरती , अनाहता सबद बाजन्त भेरी।। 3 सहस तव नैन नन नैन हहि तोहि कउ सहस मूरति नना एक तोही।। 4 सहस पद विमल नन एक पद गंध बिनु , सहस तव गंध इव चलत मोही। सभ महि जोति ज्योति है सोई , तिसदे चानणि सभ महि चनणु होई।।5 गुरु साखी जोति परगटु होई , जो तिसु भावे सु आरती होई। हरिचरण मकरंद लोभित मनो , अन दिनों मोहिं आही पिआसा।।6 कृपाजल देहि ‘ नानक ’ सारिंग कउ होइ जाते तेरे नाउ वासा।।7 ( प्रत्येक चरणात साधारण 7 शब्द , आरती ज्ञानराजा महा कैवल्य तेजा च्या चालीवर - -) गगनाच्या तबकात । दीप सूर्य चंद्र दोन्ही । तारका - गण सारे । जैसे ठेवियले मोती मलय गिरीचा हा । धूप चंदनगंधी । आरती तव कैसी । हे भवभय - हारी।। 1 पवन चौर्या ढाळी । जगन्नाथा तुजवरी । लाख ...